भूतिया कहानियाँ - काली रात का अंधेरा काली रात का अंधेरा एक असहनीय डरावनी कहानी पहला अध्याय: वापसी गाँव की सीमा पर खड़ा वह पुराना मकान आज भी उसी तरह डरावना लग रहा था, जैसा मुझे बचपन में याद था। बारिश की हल्की फुहारें छत के टिन पर टप-टप की आवाज कर रही थीं, और हवा में किसी के रोने की सी सिसकियाँ घुली हुई थीं। मैंने अपनी गाड़ी से उतरते हुए गले से लटके रुद्राक्ष की माला को थाम लिया। दादी हमेशा कहती थीं, "यह माला तुम्हें बुरी नजर से बचाएगी।" पर आज... शायद यह काम नहीं आने वाली थी। मकान का दरवाजा चरमराता हुआ खुला। अंदर की सड़ी हवा ने मेरे चेहरे पर थपेड़ा मारा। बत्ती जलाते ही दीवारों पर पड़े धब्बे मुझे घूर रहे थे—लग रहा था जैसे किसी ने खून से यहाँ लिखा हो, "तुम वापस क्यों आए?" दूसरा अध्याय: वो आवाज़ रात के दो बजे थे। मैं बिस्तर पर करवटें बदल रहा था कि अचानक नीचे की मंजिल से चीख़ सुनाई दी—"मुझे बचाओ!...
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