Skip to main content

काली रात का अंधेरा - एक डरावनी भूतिया कहानी | The Frame & The Feed

भूतिया कहानियाँ - काली रात का अंधेरा

काली रात का अंधेरा

एक असहनीय डरावनी कहानी

भूतिया घर

पहला अध्याय: वापसी

गाँव की सीमा पर खड़ा वह पुराना मकान आज भी उसी तरह डरावना लग रहा था, जैसा मुझे बचपन में याद था। बारिश की हल्की फुहारें छत के टिन पर टप-टप की आवाज कर रही थीं, और हवा में किसी के रोने की सी सिसकियाँ घुली हुई थीं। मैंने अपनी गाड़ी से उतरते हुए गले से लटके रुद्राक्ष की माला को थाम लिया। दादी हमेशा कहती थीं, "यह माला तुम्हें बुरी नजर से बचाएगी।" पर आज... शायद यह काम नहीं आने वाली थी।

मकान का दरवाजा चरमराता हुआ खुला। अंदर की सड़ी हवा ने मेरे चेहरे पर थपेड़ा मारा। बत्ती जलाते ही दीवारों पर पड़े धब्बे मुझे घूर रहे थे—लग रहा था जैसे किसी ने खून से यहाँ लिखा हो, "तुम वापस क्यों आए?"

दूसरा अध्याय: वो आवाज़

रात के दो बजे थे। मैं बिस्तर पर करवटें बदल रहा था कि अचानक नीचे की मंजिल से चीख़ सुनाई दी—"मुझे बचाओ!" यह आवाज़ मेरी बहन की थी, जो पाँच साल पहले इसी मकान में गायब हो गई थी। मेरी रूह काँप उठी। पैरों ने जवाब दे दिया, पर मैं खुद को संभालते हुए सीढ़ियों से नीचे उतरा।

नीचे का कमरा बर्फ की तरह ठंडा था। टॉर्च की रोशनी में एक पुरानी तस्वीर नजर आई—मेरी दादी, जिनकी आँखें अब काले धुएँ से भरी हुई थीं। तभी पीछे से किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। मुड़ा तो कोई नहीं था... सिवाय उस लाल साड़ी के, जो हवा में लहरा रही थी।

तीसरा अध्याय: भूतिया दर्पण

अगली सुबह, मैंने मकान के पिछवाड़े में एक टूटा हुआ दर्पण खोज निकाला। दादी कहती थीं, "शीशे में वो दुनिया होती है जहाँ मुर्दे रहते हैं।" मैंने उसे साफ किया तो उसमें मेरा चेहरा नहीं, बल्कि एक औरत दिखाई दी—उसकी आँखें नहीं थीं, और गले से लटकता एक काले धागे का फंदा। उसने होंठ हिलाए, "तुमने मुझे याद किया?"

उसी पल, दर्पण से एक हाथ निकला और मेरी कलाई पकड़ ली। मैं चीख़ा, "छोड़ो मुझे!" पर वो हाथ मेरे खून में उतरता जा रहा था। तभी दादी की माला चमकी, और सब कुछ गायब हो गया।

चौथा अध्याय: गाँव का राज

गाँव के बुजुर्ग बाबा रामदीन ने बताया, "यह मकान तुम्हारी पारिवारिक बद्दुआ है। तुम्हारे परदादा ने एक साध्वी को धोखे से मार डाला था। उसकी आत्मा अब तक यहाँ भटक रही है।"

"पर मेरी बहन कहाँ है?" मैंने गुस्से से पूछा।

बाबा ने आँखें बंद करते हुए कहा, "वो तो उसी दिन मर गई थी, जब तुमने इस मकान को छोड़ा था। पर उसकी आत्मा को चैन नहीं मिला। वो तुम्हें बचाने की कोशिश कर रही है।"

आखिरी अध्याय: अंतिम सच

उस रात, मैंने मकान की नींव में दबे एक डायरी को खोज निकाला। उसमें लिखा था—*"मैंने उस साध्वी की बलि दी थी, ताकि हमारा खानदान अमर रहे। पर उसने श्राप दिया: हर पीढ़ी का एक बच्चा मुझे भेंट चढ़ेगा।"*

तभी मैंने अपनी बहन की आवाज़ सुनी, "भैया, मैंने तुम्हें बचाने के लिए खुद को उसे सौंप दिया। अब तुम्हारी बारी है।" पीछे मुड़ा तो वही बिना आँखों वाली औरत खड़ी थी, उसके हाथ में मेरी बहन का स्कार्फ... और उसकी गर्दन पर वही काला फंदा।

Comments

Popular posts from this blog

Pyar Ka Professor Review: A Quirky Rom-Com Blending Love, Politics, and Laughter | The Frame & The Feed

Pyar Ka Professor Review - The Frame & The Feed Entertainment | Web Series Review 🌙 Dark Mode Pyar Ka Professor: A Quirky Rom-Com Blending Love, Politics, and Laughter Plot Overview The series follows Vaibhav Chak (Pranav Sachdeva), a sharp-witted Delhi dating coach who teaches men his "5-step method" to decode body language and charm women. His life spirals when a struggling politician, Pankaj Hooda (Mahesh Balraj), hires him to improve his public image. Vaibhav’s carefully crafted strategies unravel as he falls for the politician’s wife, Malika (Sandeepa Dhar), leading to his first heartbreak and a journey of self-discovery. Set against Delhi’s vibrant backdrop, the series critiques modern dating culture while balancing slapstick comedy with emotional depth. Review Pyar Ka Professor shines with: ...